गोदान किसान और किसानी का, मजदूर और मजदूरी का।
गोदान इस देश में इस दौर का नया पहचान बन रहा है।
बुधिया की खेती खराब हो गई है।
उसका लड़का गोबर शहर की फैक्ट्री में मजदूर बन गया है।
ये एक जमीन मालिक से दिहाड़ी मजदूर बनने की कहानी है।
खेती-बाड़ी में दाम सरकार तय कर रही!
जबकि फैक्ट्री में बने सामानों की कीमत फैक्ट्री मालिक तय कर रहे, जिससे खेती करना नुकसान का काम हो गया है।
मजदूर की मजदूरी खेती से हो रही कमाई से ज्यादा हो गई है।
ये पूंजीवाद जाने क्या क्या ना कर दे।
उधर शहर में फैक्ट्रियां भी सरकारी नीतियों के कारण बंद हो रही।
गोबर जो गांव छोड़कर शहर गया था अब उजड़े गांव में आता है और दिशाहीन स्थिति में है।
बुधिया कहता है कहां जायें, राम जी भी बुधिया के साथ नहीं हैं।
यही है किसान और किसानी की कहानी।
दिहाड़ी मजदूर बनने की कहानी।
दोस्तों अगर कल और आज को एक साथ देखना चाहते हैं तो लगभग सौ साल पहले प्रेमचंद की कालजई रचना गोदान पढ़ें।
कुछ भी फर्क नहीं दिखाई देता आज के किसान, मजदूर के हालात उस अंग्रेजी दौर के हालात से।
बस देश आजाद है, शासक हमारे हैं।
लेकिन अधिकतर नियम 1856 एवं 1858 के ही हैं, चाहे वो सीआरपीसी हो या आईपीसी।
कालजयी रचना किसी एक कालखंड की नहीं होतीं।
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