Saturday, 2 June 2018

Last part.वर्ष 1943 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध अपने चरम पर था, तब बंगाल में भारी अकाल पड़ा था जिसमें लाखों लोग मारे गए थे.Part 2 and last.


Vikas pandey -

"During 2nd world war Indian people faced disaster. Indian History is still silent upon this. In Modern history of India this period is seen only as Freedom struggle and big war but worst man made Famine of Indian history, its impact on society, culture and People who suffered were left behind. Historians must have to write upon it and its impact on war, people, freedom struggle and division of Nation.".

प्रोफ़ेसर रफ़ीकुल इस्लाम तब 10 साल के थे और ढाका में रहते थे. वह कहते हैं, "जब भी मैं उन दिनों के बारे में सोचता हूं, मैं खो जाता हूं |

वर्ष 1943 में बंगालियों को जिस आपदा का सामना करना पड़ा, वह विश्व के इतिहास की सबसे बड़ी आपदाओं में से एक है."
बीबीसी के कार्यक्रम विटनेस के लिए फ़रहाना हैद ने मानवीय इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक बंगाल में पड़े भीषण अकाल के बारे में प्रोफ़ेसर रफ़ीकुल इस्लाम से बात की.
प्रोफ़ेसर इस्लाम को अब भी याद है कि परेशान लोग खाने की तलाश में मारे-मारे फिरते थे.
वे बताते हैं, "लोग भूखे मर रहे थे क्योंकि ग्रामीण भारत में खाने-पीने की चीज़ें उपलब्ध नहीं थीं. इसलिए लोग कोलकाता, ढाका जैसे बड़े शहरों में खाने और आश्रय की तलाश में पहुंचने लगे

लेकिन वहां खाना था, रहने की जगह. उन्हें रहने की जगह सिर्फ़ कूड़ेदानों के पास ही मिल रही थी, जहां उन्हें कुत्ते-बिल्लियों से संघर्ष करना पड़ता था ताकि कुछ खाने को मिल जाए."
वो कहते हैं, "कोलकाता, ढाका की सड़कें कंकालों से भर गई थीं. इंसानी ढांचे जो कई दिन से भूखे थे और सिर्फ़ मरने के लिए ही बंगाल के कस्बों और शहरों में पहुंचे थे."
बंगाल का अकाल जापान के बर्मा पर कब्ज़ा कर लेने के बाद ही आया था. भारत पर काबिज़ अंग्रेज़ सरकार ने देश के अन्य क्षेत्रों से सूखा प्रभावित हिस्से तक अनाज पहुंचने पर रोक लगा दी थी.
इसका उद्देश्य एक तो इसे विरोधियों के हाथों में पड़ने से रोकना था और दूसरा यह कि स्थानीय लोगों को ठीक से खाना मिले.
प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "यह प्राकृतिक आपदा नहीं थी, यह मानवनिर्मित आपदा थी. ग्रामीण इलाकों में खाद्य पदार्थ सिर्फ़ इसलिए नहीं थे क्योंकि फ़सल बर्बाद हो गई थी बल्कि इसलिए भी क्योंकि अनाज को एक जगह से दूसरी जगह नहीं जाने दिया जा रहा था. उन्हें डर था कि यह जापानियों के हाथों में पड़ जाएं."
वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि यह फ़ैसला मित्र राष्ट्रों के नेतृत्व का था. कोलकाता में सेना के लिए खाद्य पदार्थों का अतिरिक्त स्टॉक था. लेकिन ग्रामीण इलाकों में खाने को कुछ भी नहीं था. और किसी को इसकी परवाह भी नहीं थी."
हड्डियों के ढांचे
प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "मैं राहत कर्मियों के एक छोटे से दल के साथियों के साथ हल्दी नदी पर स्थित टेरेपेकिया बाज़ार पहुंचा. वहां मैंने निर्वस्त्र, करीब-करीब कंकाल बन चुके करीब 500 महिला-पुरुषों को देखा."
वो कहते हैं, "उनमें से कुछ आने-जाने वालों से भीख मांग रहे थे तो कुछ कोने में पड़े थे, अपनी मौत का इंतज़ार करते. उनमें सांस लेने की शक्ति भी नहीं बची थी और दुर्भाग्य से मैंने आठ लोगों को अंतिम सांसे लेते देखा. इससे मैं अंदर तक हिल गया."
जंग की वजह से कीमतें आसमान छू रही थीं और जापानी आक्रमण को लेकर अनिश्चितता की वजह से शहरी इलाकों में जमाखोरी हो रही थी.
इसके फलस्वरूप देहात में चीज़ें बेहद महंगी हो गईं और जब लोग मरने लगे तो भारी संख्या में शहरों की ओर इस उम्मीद में पलायन होने लगा कि वहां राहत दी जा रही होगी.
प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "त्रासदी यह है कि कस्बों, शहरों में रहने वाले लोगों की उन बदकिस्मत लोगों से ज़रा भी सहानुभूति नहीं थी. इनमें से ज़्यादातर लोग उन्हीं सड़कों, शहरों में रह गए, वह कभी वापस गांव नहीं लौटे. गांव का ढांचा ही बर्बाद हो गया और बंगाल कभी भी उससे उबर नहीं पाया."
प्रोफ़ेसर इस्लाम के अनुसार उन्हें एक अकाल पीड़ित ने बताया, "मैं अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ा था और जिंदा रहने के लिए दिहाड़ी मज़दूरी किया करता था

 मैंने अपने पिता को गांव में छोड़ा और भाई-बहनों को कोलकाता ले आया. उनके पास बस आटा था. हम हर उस जगह जाते जहां खाना बंट रहा होता."
अकाल पीडि़त ने बताया, "उस दौरान मैंने बहुत-कुछ देखा. लोग घास और सांप तक खा रहे थे. मेरी दो बहनों उस दौरान मारी गईं."
  Note (Vikas Pandey) - This feminine was man made. British govt was totally responsible for this. They had to look after their Indian Citizens, but they didn't. In this they failed.


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