Sunday 26 April 2020

AKASHAYA TRITIYA. Akshaya means which can't be destroyed.












Friends today is AKASHAYA TRITIYA. 

People think its good to buy gold this day, so that his treasure of wealth will never perish and it will be with him for ever.

Even one can get many offers for this day for purchasing gold.

Are not we greedy and materialist? 

Is this country teaches us to be a materialist? 

Is this true SANATAN DHARMA?

No this is the country where SPIRITUAL life is seen as great. 

Than why this greediness?

I am writing this because today Mother AMANDA GRIFFIN asked me question - Tell me about Akshaya Tritiya? 

And this prompted me to write this.

Akshaya means which can't be destroyed. 

This day whatever you do will continue with you. 

So do good. 

Generally people buy gold so that it will be with them forever.

Is this really true? 

No, material will not go with anyone in heaven only good deeds, name and fame. 

So why purchase Gold, why not pray, Meditate and do good things.

Why not people do good, feed hunger serve humanity and life? 
Why not respect elders and help them? 

Only this is SANATAN DHARMA.
AUM.

Monday 20 April 2020

Republic in Ancient India during Mahabharat Period.


महाभारत का यह श्लोक बताता है कि उस काल में भी गणों के शासन थे। 
इससे सिद्ध होता है कि गण अर्थात रिपब्लिक यानि जनतंत्र उस दौर में भी था जिसका अंत राजशाही ने किया। 

यह घटना बुद्ध से( 600 बीसी ) BC से बहुत पहले की है। 

मथुरा में भी गणतंत्र था जिसका अंत कंस ने किया था, जिसे मारकर कृष्ण ने पुनः गणतंत्र की स्थापना की थी, जिसका चुना हुआ प्रमुख राजा कहलाता था। 
कालांतर में वैशाली जनपद भी ऐसा ही था। वहाँ भी राजा का चुनाव होता था।

इसीलिये कहा जाता है कि महाभारत में एेतिहासिक प्रमाण भरे पड़े हैं केवल उन्हें कहानियों से अलग निकालने की जरूरत है ।

This sloka from Mahabharata shows that there was Republic too. 

Which was defeated and taken over by the kings and Emperors. 

Its the oldest evidence I have seen so far in the world history.
Mathura was a Republic too.

Which was over powered by Kansas.

By defeating and  killing Kansas Krishna established Republic rule again. 

King Ugrasen was the chief of Republic.

That's why it is said there is history in the stories of Mahabharata.
Only we have to collect them from the sea of Mahabharata like pearl.

Monday 13 April 2020

भारत में बैसाखी के पर्व की मान्यता !







आज वैशाखी है! बैसाखी शब्‍द की उत्‍पत्ति वैशाख से मानी जाती है!

एक अकाल, एकै सत! वाहे गुरू का खालसा, वाहे गुरू की फतह!

खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 AD को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में की। 
इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पाँच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया तथा तत्पश्चात् उन पाँच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। 
खालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य आम लोगों को मुगलों के अत्याचारों से बचना था।  
खंडा बाटा, जंत्र मंत्र और तंत्र के स्मेल से बना है। इसको पहली बार सतगुर गोबिंद सिंह ने बनाया था।
·        जंत्र : बाटा (बर्तन) और दो धारी खंडा
·        मंत्र : ५ बानियाँ - जपु साहिब, जाप साहिब, त्व प्रसाद सवैये, चोपाई साहिब, आनंद साहिब
·        तंत्र : मीठे पतासे डालना, बानियों को पढ़ा जाना और खंडे को बाटे में घुमाना
इस विधि से हुआ तयार जल को "पाहुल" कहते हैं। आम भाषा में इसे लोग अमृत भी कहते हैं।
इस को पी कर सिख, खालसा फ़ौज, का हिसा बन जाता है अर्थात अब उसने तन मन धन सब परमेश्वर को सौंप दिया है, अब वो सिर्फ सच का प्रचार करेगा और ज़रूरत पढने पर वो अपना गला कटाने से पीछे नहीं हटेगा। 
सब विकारों से दूर रहेगा। 
ऐसे सिख को अमृतधारी भी कहा जाता है। 
यह पाहुल पाँचों को पिलाई गई और उन्हें पांच प्यारों के ख़िताब से निवाजा।
२ कक्कर तो सिख धर्म में पहले से ही थे। 
जहाँ सिख आत्मिक सत्ल पर सब से भीं समझ रखता था सतगुर गोबिंद सिंह जी ने उन दो ककारों के साथ साथ कंघा, कड़ा और कछा दे कर शारीरिक देख में भी खालसे को भिन्न कर दिया। 
आज खंडे बाटे की पाहुल पांच प्यारे ही तयार करते हैं। 
यह प्रिक्रिया आज रिवाज बन गयी है। आज वैसी परीक्षा नहीं ली जाती जैसी उस समे ली गई थी।
इस प्रिक्रिया को अमृत संचार भी कहा जाता है।

हिंदू मान्यताओं के अनुसार बैसाख के महीने में भगवान बद्रीनाथ की यात्रा का आरंभ होता है।

बैसाखी के पर्व से ही सिखों के नए साल का आगाज होता है 

बैसाखी इसी नए साल का पहला दिन है 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है  

इस दिन सूर्य जब मीन राशि को छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करता है तब इस दिन मेष संक्रांति के तौर यह त्योहार मनाया जाता है।   

पंजाब में जब रवि की फसल पककर तैयार हो जाती है तो यह पर्व मनाया जाता है। 

बैसाखी का त्योहार मुख्यरूप से पंजाब और हरियाणा के साथ इसके आसपास के राज्यों में मनाया जाता है। 

बैसाखी पर लोग एक दूसरों को शुभकामना संदेश और बधाईयां देते हैं। 

बैसाखी पर लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और जगह- जगह मेले का आयोजन किया जाता है।

बैसाखी का त्योहार न सिर्फ फसलों के पकने की खुशी के तौर पर मनाया जाता है बल्कि कई अन्य परंपरा और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े होने की वजह से भी है। 
देश के कई हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। 
बैसाखी के पर्व को देश के कई अन्य राज्यों में भी अलग अलग नामों के साथ मनाने की परंपरा है 
पंजाब और हरियाणा में बैसाखी, असम में इस त्योहार को बिहू के नाम मनाया जाता है  
वहीं बंगाल में इसे पोइला बैसाख कहा जाता है  
केरल में इसे विशु कहते हैं  
उत्‍तराखंड में बैसाखी को ‘बिखोती महोत्‍सव’ के रूप में मनाते है। 
इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाने की परंपरा है।
बैसाखी की धूम सबसे ज्यादा पंजाब में रहती है। 
यहां के लोग बड़े ही उत्सह के साथ नाचते और गाते हुए इस पर्व को मनाते है। गुरुद्वारों को विशेष तौर पर सजाया जाता है। 

भजन और कीर्तन कर अपने ईश्वर का धन्यवाद देते हैं। 

इस दिन जगह-जगह मेले भी लगते हैं।  

असमिया कैलेंडर बैसाख महीने से शुरू होता है जो अंग्रेजी माह के अप्रैल महीने के मध्य में शुरू होता है और यह बिहू सात दिन तक अलग-अलग रीति-रीवाज के साथ मनाया जाता है। 

बैसाख महीने का संक्रांति से बोहाग बिहू शुरू होता है। 

इसमें प्रथम दिन को गाय बिहू कहा जाता है। 

इस दिन लोग सुबह अपनी-अपनी गायों को नदी में ले जाकर नहलाते हैं। 

बिहू के दौरान ही युवक एवं युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी को चुनते हैं और अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करते हैं इसलिए असम में बैसाख महीने में ज्यादातर विवाह संपन्न होते हैं।

दिल्ली, पंजाब के अलावा सिख समुदाय में भी वैशाखी का पर्व मनाया जाता है। 

पर बिहार में आज का दिन कई परंपरागत पर्व के रूप में जाना जाता है। 

बिहार में आज जूड़ शीतल मनाया जा रहा है। 

आज के दिन वहां सत्तू और गुड़ खाया जाता है। 

दाल की पूडि़यां बनती हैं।  

बिहार में आज अगर चले जाइए तो आपको कहीं होली जैसा नजारा दिख जाएगा तो कहीं जेठ की गर्मी जैसा।
असल में मिथिलांचल आज जूड़ शीतल पर्व मना रहा है। 
इसमें सुबह से एकदूसरे पर पानी डालने की परंपरा है। 
खासतौर पर उनको जिनसे आपका मजाक का रिश्ता बनता है यानी देवर, भाभी, शाली, सरहज आदि।

उड़ीसा में इस दिन को त्योहार की तरह मनाया जाता है जिसे राजा परबा कहा जाता है। 

ऐसा कहा जाता है कि इस पर्व के जरिए पहली बारिश का स्वागत किया जाता है। 

इस दिन लोग राजा गीत भी गाते हैं जो कि इस राज्य का लोक संगीत है। 

मिथुन संक्रांति पर भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। 

यह पर्व चार दिन पहले ही शुरू हो जाता है। 

इस पर्व में अविवाहित कन्याएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। माना जाता है कि वे अच्छे वर की कामना से यह पर्व मनाती हैं।

इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य भगवान की पूजा करें और उन्हें जल अर्पित करें 
इस दिन अन्न की पूजा करें और देश के अन्नदाताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें और भगवान से देश के किसानों के लिए प्रार्थना करें।

Thursday 2 April 2020

भारत का लोकनायक तुलसीदास के श्रीराम Read how Tulsidas seen his Ram as a king and his view upon the condition of his time, which is still relevant even today too.





उम्मीद है अब किसी को भी मेरे लेखन पर आपत्ति नहीं होगी।
आज तक जो भी लिखा है वो जांच परख कर ही लिखा है झूठा नहीं।

 तुलसी के राम तो यू पी एस सी के हिंदी भाषा के  सिलेबस में पहली बार मुझे मिले थे, तब से वो मेरे हो गये।

मैं उनका हुआ कि नहीं ये राम जानें।

हिंदी भाषा में तुलसीदास के योगदान एवं राम के प्रति उनका नजरिया यहां पर व्यक्त किया गया है।

जब चारों तरफ राम ही हों तब उनको अलग अलग रूप में देख कर उनको समझना ज्यादा बेहतर होगा।

राम एक भगवान के अलावा, एक पुत्र, एक भाई, एक पति, एक पिता, एक शासक, एक राष्ट्र नायक एवं बहुत कुछ थे।

पढ़ें श्री राम को तुलसीदास की नजर से।

Yea hai Bharat ke RAM.



"है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़,
अहल-ए-नजर समझते हैं उसको इमाम-ए-हिंद !"


‘अहल-ए-नजर’ का अर्थ होता हैं समझदार या ज्ञानी. इक़बाल का कहना है कि भारत को इस पर गर्व है कि श्रीराम ने यहां जन्म लिया. उनके अनुसार ज्ञानी लोग उनको ‘इमाम-ए-हिंद’ अर्थात् भारत का गुरु या अगुआई करने वाला मानते हैं.


ऐसा नहीं है कि इक़बाल के लिए श्रीराम केवल दार्शनिक ही थे. वे लिखते हैं:


"तलवार का धनी था, शुजाअत में फर्द था,
पाकीज़गी में, जोश-ए-मुहब्बत में फर्द था !"


उनके लिए श्रीराम एक बहादुर योद्धा भी थे, धर्मनिष्ठ भी थे और प्रेम भाव रखने में भी उनका कोई जोड़ नहीं था. ये सभी गुण मिलकर श्रीराम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ बनाते हैं.


तुलसीदास के श्रीराम -


हजारी प्रसाद द्विवेदी का मानना है कि, "भारत का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय का अपार धैर्य लेकर आया हो।"


उन्हें तुलसी में समन्वय की विराट चेष्टा दिखी। उन्होंने विभिन्न सांप्रदायिक एवं वैचारिक पद्धतियों में समन्वय स्थापित किया -


"अगुनहिं सगुनहिं नहिं कछु भेदा। गावहिं श्रुति पुरान बुध बेदा।"
"शिवद्रोही मम दास कहावा। सो नर मोहिं सपनेहुँ नहिं भावा।"


तुलसीदास ने रामराज्य की धारणा से प्रजातांत्रिक राजतंत्र की कल्पना की है !जहाँ व्यक्ति को अपनी जरूरत के मुताबिक सभी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध हों तथा जहाँ प्रजा की सुविधाओं का राजा सदा ध्यान रखें।


राम का राज्य ऐसा ही है जहाँ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सबके लिए सुलभ हैं - 'सुलभ पदारथ चारि'।


तथा जिसके स्थापित होने पर सामाजिक ऊँच-नीच का भेद मिट जाता है - 'बयरु न कर काहू सन कोई, रामराज विषमता खोई'।


रामराज में दुःख दारिद्र्य का भी कोई स्थान नहीं है - 'नहिं दरिद्र कोऊ दुखी न दीना'।


तुलसी तो यहाँ तक कहते हैं कि जो राजा प्रजा का ध्यान नहीं रखता उसे नर्क भोगना पड़ता है - 'जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवस नर्क अधिकारी।'


तुलसीदास का राजनीतिक आदर्श 'रामराज' है जिसके बारे में वे उत्तरकांड में कहते हैं -


"दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।
चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं।।
राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी।।"


राम का चरित्र मर्यादाबद्ध है। वे पुरुषोत्तम हैं इसलिए भक्तों ने उनके प्रति श्रद्धा व दास्य भाव प्रकट करते हुए भक्ति की -


"राम सों बड़ो है कौन, मोसों कौन छोटो
राम सों खरो है कौन, मोसों कौन खोटो।"


आर्थिक समस्याओं की पहचान


यह काव्यधारा अकेली काव्यधारा है जिसमें आधुनिक काल से पहले आर्थिक समस्याओं को पूरे विस्तार के साथ उठाया गया है -


"खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।
जीविकाबिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों, ‘कहाँ जाई , का करी?"


'कवितावली' में तुलसीदास कहते हैं -


"धूत कहो, अवधूत कहो, रजपूत कहो, जुलहा कहौ कोऊ
काहू की बेटी सो बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ
तुलसी सरनाम गुलाम है राम को, जाको रूचे सो कहे कछु कोऊ
मांग के खाइबो , मसीत में सोइबो, लेवे को एक न देवे को दोऊ।।"

मसीत (मस्जिद)

Friends my book "ROOTS INDIA" is coming in this month.  In this book one will get an Ancient Indian Literature from Veda, its Peri...