Monday 13 April 2020

भारत में बैसाखी के पर्व की मान्यता !







आज वैशाखी है! बैसाखी शब्‍द की उत्‍पत्ति वैशाख से मानी जाती है!

एक अकाल, एकै सत! वाहे गुरू का खालसा, वाहे गुरू की फतह!

खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 AD को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में की। 
इस दिन उन्होंने सर्वप्रथम पाँच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया तथा तत्पश्चात् उन पाँच प्यारों के हाथों से स्वयं भी अमृतपान किया। 
खालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य आम लोगों को मुगलों के अत्याचारों से बचना था।  
खंडा बाटा, जंत्र मंत्र और तंत्र के स्मेल से बना है। इसको पहली बार सतगुर गोबिंद सिंह ने बनाया था।
·        जंत्र : बाटा (बर्तन) और दो धारी खंडा
·        मंत्र : ५ बानियाँ - जपु साहिब, जाप साहिब, त्व प्रसाद सवैये, चोपाई साहिब, आनंद साहिब
·        तंत्र : मीठे पतासे डालना, बानियों को पढ़ा जाना और खंडे को बाटे में घुमाना
इस विधि से हुआ तयार जल को "पाहुल" कहते हैं। आम भाषा में इसे लोग अमृत भी कहते हैं।
इस को पी कर सिख, खालसा फ़ौज, का हिसा बन जाता है अर्थात अब उसने तन मन धन सब परमेश्वर को सौंप दिया है, अब वो सिर्फ सच का प्रचार करेगा और ज़रूरत पढने पर वो अपना गला कटाने से पीछे नहीं हटेगा। 
सब विकारों से दूर रहेगा। 
ऐसे सिख को अमृतधारी भी कहा जाता है। 
यह पाहुल पाँचों को पिलाई गई और उन्हें पांच प्यारों के ख़िताब से निवाजा।
२ कक्कर तो सिख धर्म में पहले से ही थे। 
जहाँ सिख आत्मिक सत्ल पर सब से भीं समझ रखता था सतगुर गोबिंद सिंह जी ने उन दो ककारों के साथ साथ कंघा, कड़ा और कछा दे कर शारीरिक देख में भी खालसे को भिन्न कर दिया। 
आज खंडे बाटे की पाहुल पांच प्यारे ही तयार करते हैं। 
यह प्रिक्रिया आज रिवाज बन गयी है। आज वैसी परीक्षा नहीं ली जाती जैसी उस समे ली गई थी।
इस प्रिक्रिया को अमृत संचार भी कहा जाता है।

हिंदू मान्यताओं के अनुसार बैसाख के महीने में भगवान बद्रीनाथ की यात्रा का आरंभ होता है।

बैसाखी के पर्व से ही सिखों के नए साल का आगाज होता है 

बैसाखी इसी नए साल का पहला दिन है 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है  

इस दिन सूर्य जब मीन राशि को छोड़कर मेष राशि में प्रवेश करता है तब इस दिन मेष संक्रांति के तौर यह त्योहार मनाया जाता है।   

पंजाब में जब रवि की फसल पककर तैयार हो जाती है तो यह पर्व मनाया जाता है। 

बैसाखी का त्योहार मुख्यरूप से पंजाब और हरियाणा के साथ इसके आसपास के राज्यों में मनाया जाता है। 

बैसाखी पर लोग एक दूसरों को शुभकामना संदेश और बधाईयां देते हैं। 

बैसाखी पर लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और जगह- जगह मेले का आयोजन किया जाता है।

बैसाखी का त्योहार न सिर्फ फसलों के पकने की खुशी के तौर पर मनाया जाता है बल्कि कई अन्य परंपरा और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़े होने की वजह से भी है। 
देश के कई हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। 
बैसाखी के पर्व को देश के कई अन्य राज्यों में भी अलग अलग नामों के साथ मनाने की परंपरा है 
पंजाब और हरियाणा में बैसाखी, असम में इस त्योहार को बिहू के नाम मनाया जाता है  
वहीं बंगाल में इसे पोइला बैसाख कहा जाता है  
केरल में इसे विशु कहते हैं  
उत्‍तराखंड में बैसाखी को ‘बिखोती महोत्‍सव’ के रूप में मनाते है। 
इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाने की परंपरा है।
बैसाखी की धूम सबसे ज्यादा पंजाब में रहती है। 
यहां के लोग बड़े ही उत्सह के साथ नाचते और गाते हुए इस पर्व को मनाते है। गुरुद्वारों को विशेष तौर पर सजाया जाता है। 

भजन और कीर्तन कर अपने ईश्वर का धन्यवाद देते हैं। 

इस दिन जगह-जगह मेले भी लगते हैं।  

असमिया कैलेंडर बैसाख महीने से शुरू होता है जो अंग्रेजी माह के अप्रैल महीने के मध्य में शुरू होता है और यह बिहू सात दिन तक अलग-अलग रीति-रीवाज के साथ मनाया जाता है। 

बैसाख महीने का संक्रांति से बोहाग बिहू शुरू होता है। 

इसमें प्रथम दिन को गाय बिहू कहा जाता है। 

इस दिन लोग सुबह अपनी-अपनी गायों को नदी में ले जाकर नहलाते हैं। 

बिहू के दौरान ही युवक एवं युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी को चुनते हैं और अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करते हैं इसलिए असम में बैसाख महीने में ज्यादातर विवाह संपन्न होते हैं।

दिल्ली, पंजाब के अलावा सिख समुदाय में भी वैशाखी का पर्व मनाया जाता है। 

पर बिहार में आज का दिन कई परंपरागत पर्व के रूप में जाना जाता है। 

बिहार में आज जूड़ शीतल मनाया जा रहा है। 

आज के दिन वहां सत्तू और गुड़ खाया जाता है। 

दाल की पूडि़यां बनती हैं।  

बिहार में आज अगर चले जाइए तो आपको कहीं होली जैसा नजारा दिख जाएगा तो कहीं जेठ की गर्मी जैसा।
असल में मिथिलांचल आज जूड़ शीतल पर्व मना रहा है। 
इसमें सुबह से एकदूसरे पर पानी डालने की परंपरा है। 
खासतौर पर उनको जिनसे आपका मजाक का रिश्ता बनता है यानी देवर, भाभी, शाली, सरहज आदि।

उड़ीसा में इस दिन को त्योहार की तरह मनाया जाता है जिसे राजा परबा कहा जाता है। 

ऐसा कहा जाता है कि इस पर्व के जरिए पहली बारिश का स्वागत किया जाता है। 

इस दिन लोग राजा गीत भी गाते हैं जो कि इस राज्य का लोक संगीत है। 

मिथुन संक्रांति पर भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। 

यह पर्व चार दिन पहले ही शुरू हो जाता है। 

इस पर्व में अविवाहित कन्याएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। माना जाता है कि वे अच्छे वर की कामना से यह पर्व मनाती हैं।

इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सूर्य भगवान की पूजा करें और उन्हें जल अर्पित करें 
इस दिन अन्न की पूजा करें और देश के अन्नदाताओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट करें और भगवान से देश के किसानों के लिए प्रार्थना करें।

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