Thursday 2 April 2020

भारत का लोकनायक तुलसीदास के श्रीराम Read how Tulsidas seen his Ram as a king and his view upon the condition of his time, which is still relevant even today too.





उम्मीद है अब किसी को भी मेरे लेखन पर आपत्ति नहीं होगी।
आज तक जो भी लिखा है वो जांच परख कर ही लिखा है झूठा नहीं।

 तुलसी के राम तो यू पी एस सी के हिंदी भाषा के  सिलेबस में पहली बार मुझे मिले थे, तब से वो मेरे हो गये।

मैं उनका हुआ कि नहीं ये राम जानें।

हिंदी भाषा में तुलसीदास के योगदान एवं राम के प्रति उनका नजरिया यहां पर व्यक्त किया गया है।

जब चारों तरफ राम ही हों तब उनको अलग अलग रूप में देख कर उनको समझना ज्यादा बेहतर होगा।

राम एक भगवान के अलावा, एक पुत्र, एक भाई, एक पति, एक पिता, एक शासक, एक राष्ट्र नायक एवं बहुत कुछ थे।

पढ़ें श्री राम को तुलसीदास की नजर से।

Yea hai Bharat ke RAM.



"है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज़,
अहल-ए-नजर समझते हैं उसको इमाम-ए-हिंद !"


‘अहल-ए-नजर’ का अर्थ होता हैं समझदार या ज्ञानी. इक़बाल का कहना है कि भारत को इस पर गर्व है कि श्रीराम ने यहां जन्म लिया. उनके अनुसार ज्ञानी लोग उनको ‘इमाम-ए-हिंद’ अर्थात् भारत का गुरु या अगुआई करने वाला मानते हैं.


ऐसा नहीं है कि इक़बाल के लिए श्रीराम केवल दार्शनिक ही थे. वे लिखते हैं:


"तलवार का धनी था, शुजाअत में फर्द था,
पाकीज़गी में, जोश-ए-मुहब्बत में फर्द था !"


उनके लिए श्रीराम एक बहादुर योद्धा भी थे, धर्मनिष्ठ भी थे और प्रेम भाव रखने में भी उनका कोई जोड़ नहीं था. ये सभी गुण मिलकर श्रीराम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ बनाते हैं.


तुलसीदास के श्रीराम -


हजारी प्रसाद द्विवेदी का मानना है कि, "भारत का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय का अपार धैर्य लेकर आया हो।"


उन्हें तुलसी में समन्वय की विराट चेष्टा दिखी। उन्होंने विभिन्न सांप्रदायिक एवं वैचारिक पद्धतियों में समन्वय स्थापित किया -


"अगुनहिं सगुनहिं नहिं कछु भेदा। गावहिं श्रुति पुरान बुध बेदा।"
"शिवद्रोही मम दास कहावा। सो नर मोहिं सपनेहुँ नहिं भावा।"


तुलसीदास ने रामराज्य की धारणा से प्रजातांत्रिक राजतंत्र की कल्पना की है !जहाँ व्यक्ति को अपनी जरूरत के मुताबिक सभी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध हों तथा जहाँ प्रजा की सुविधाओं का राजा सदा ध्यान रखें।


राम का राज्य ऐसा ही है जहाँ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सबके लिए सुलभ हैं - 'सुलभ पदारथ चारि'।


तथा जिसके स्थापित होने पर सामाजिक ऊँच-नीच का भेद मिट जाता है - 'बयरु न कर काहू सन कोई, रामराज विषमता खोई'।


रामराज में दुःख दारिद्र्य का भी कोई स्थान नहीं है - 'नहिं दरिद्र कोऊ दुखी न दीना'।


तुलसी तो यहाँ तक कहते हैं कि जो राजा प्रजा का ध्यान नहीं रखता उसे नर्क भोगना पड़ता है - 'जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवस नर्क अधिकारी।'


तुलसीदास का राजनीतिक आदर्श 'रामराज' है जिसके बारे में वे उत्तरकांड में कहते हैं -


"दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।
चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहुँ अघ नाहीं।।
राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी।।"


राम का चरित्र मर्यादाबद्ध है। वे पुरुषोत्तम हैं इसलिए भक्तों ने उनके प्रति श्रद्धा व दास्य भाव प्रकट करते हुए भक्ति की -


"राम सों बड़ो है कौन, मोसों कौन छोटो
राम सों खरो है कौन, मोसों कौन खोटो।"


आर्थिक समस्याओं की पहचान


यह काव्यधारा अकेली काव्यधारा है जिसमें आधुनिक काल से पहले आर्थिक समस्याओं को पूरे विस्तार के साथ उठाया गया है -


"खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।
जीविकाबिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों, ‘कहाँ जाई , का करी?"


'कवितावली' में तुलसीदास कहते हैं -


"धूत कहो, अवधूत कहो, रजपूत कहो, जुलहा कहौ कोऊ
काहू की बेटी सो बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ
तुलसी सरनाम गुलाम है राम को, जाको रूचे सो कहे कछु कोऊ
मांग के खाइबो , मसीत में सोइबो, लेवे को एक न देवे को दोऊ।।"

मसीत (मस्जिद)

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